भूमि, जिसकी स्तुति हमारे दार्शनिक कवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने देवी भूवनमोहिनी नील सिंधु जल धौत चरण तल कहकर की है।
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जीवन के रथ पर चढ़कर सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर महाकाल के खरतर शर सह सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर; जागे मेरे उर में तेरी मूर्ति अश्रु जल धौत विमल दृग जल से पा बल बलि कर दूँ जननि, जन्म श्रम संचित पल।
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जीवन के रथ पर चढ़कर सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर महाकाल के खरतर शर सह सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर; जागे मेरे उर में तेरी मूर्ति अश्रु जल धौत विमल दृग जल से पा बल बलि कर दूँ जननि, जन्म श्रम संचित पल। बहुत बहुत सुन्दर.....